अँजुली भर शब्द
मेरा यह तृतीय काव्य-संग्रह आपके हाथों में है। पहले दोनों काव्य-संग्रहों "कुमकुम के छींटे" व "एक नया सफर" को आपका भरपूर प्यार व आशीर्वाद मिला। मुझे विश्वास है कि मेरे इस संग्रह "अनुभूति और अभिव्यक्ति" को भी आपका स्नेह व आशीर्वाद पूर्व से अधिक ही प्राप्त होगा।
काब्य-मर्मज्ञ कहते हैं -कविता का उद्देश्य मन की तीव्रतम एवं गहनतम अनुभूतियों को अभिव्यक्ति में ढालना है। अर्थात मन-अंतर्मन में दबे,छुपे और उठे विचारों को कलात्मक ढंग से अभिव्यक्त करना ही कविता का कर्म और धर्म है। अल्प शब्दों में कहें तो अनुभूति से अभिव्यक्ति तक की यात्रा का नाम ही कविता है।
देखने में भले हम कितने ही सहज और स्वाभाविक लगते हों, किन्तु हमारे अन्तस् में भावनाओं का, विभिन्न प्रकार के विचारों का सागर, सदा उमड़ता रहता है। कभी आक्रोश बन, कभी उल्लास और असंतोष बन, तो कभी विषाद की गहन परछाइयाँ बन कर। यही भावनाएँ और उनसे जुड़े विचार, अथक मानसिक ऊहापोह को झेलते हुए कई रूपों में उभर कर सामने आते हैं। ऐसे में भावुक और संवेदनशील ह्रदय विस्फोटक न होकर अंदर ही अंदर घुटता है और भाव-द्रवित होता है। यही स्मृति, यही कल्पना, यही झंकृति, यही थरथराहट जब शब्दों में ढल जाती है तो वह कविता का रूप ले लेती है।
वियोगी हरी ने लिखा है :--
वियोगी होगा पहला कवि, आह ! से उपजा होगा गान
उमड़ कर आँखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान।
विश्व कवियों ने भी स्वीकार किया है - Our sweetest songs are those that tell of saddest thoughts. शैली तथा किट्स ने भी वेदना को उदात्त भाव के रूप में स्वीकार किया है। साहित्य की प्रेरणा का मूल स्रोत वेदना है। जब प्रेम में वियोग आ जाए तो आँसूं शब्द बन जाते हैं। विरहाकुल मन की घनीभूत पीड़ा से जन्में आँसूं, कविता बन कर बहने लग जाते हैं।वाल्मीकि का आदि काव्य रामायण भी इसी वेदना को आधार बना कर रचा गया था।
कहीं पढ़ा था कि कविता कभी-कभी सुखी हुई नदी के किनारे की रेत में खोद कर निकाले गए मीठे पानी का स्रोत भी हो सकती है, जिसे पा कर तपती हुई दोपहरी में कोई प्यासा कंठ तृप्त और धन्य भी हो सकता है। कविता वेदना से मुक्त कर मानव ह्रदय को स्वस्थ बनाती है। मेरे लिए तो रामबाण ओषधि का काम किया है इन कविताओं ने।
कहते हैं कि सुख बांटने से बढ़ता है और दुःख बांटने से घटता है। अपनों से अपनी पीड़ा का परिचय कराने से उसका आवेग वैसे भी कम हो जाता है। इसी विश्वास के साथ आपकी रूचि को "अनुभूति और अभिव्यक्ति" पर बुलाया है। प्रिय पाठक ! मेरी सहधर्मिणी स्व. सुशीला कांकाणी मेरी काब्य प्रेरणा रही, प्रथम श्रोता रही। उसका वियोग मुझे अशेष पीड़ा दे गया।मेरी इस पुस्तक की अधिकांश कविताएं आपको उसी के वियोग के दुःख के इर्द-गिर्द परिक्रमा करती हुई मिलेगी।
सुहाने रिश्तों के बंधन टूटने से उपजे दर्द के पल, आपको इन कविताओं में पढने को मिलेंगे। अहसास-ए -दर्द ही है ये सीधी-सादी रचनाऐं। क्योंकि विभिन्न मनःस्थितियों में जो अनुभूत किया वही कलम ने सहज भाव से अभिव्यक्त कर, आपके सामने रख दिया।भाषा, छंद व ब्याकरण का सम्यक ज्ञान न होने के कारण इनमें अनेक त्रुटियाँ रहना सम्भव है। अपेक्षा है कि उदार पाठक क्षमा करेंगे। मेरे सुख-दुःख, संयोग-वियोग,आसा-निरासा, आँसू-मुस्कान के सहज-जटिल और अनुकूल-प्रतिकूल मोड़ो से गुजर कर अभिव्यक्ति के पड़ाव पर ख़त्म हुई मेरी अनुभूति की यह यात्रा आपके मर्म-स्थल को कितना छू पाएगी यह तो आप ही बताएँगे।
मैं अपनी पूज्य स्व. माताजी श्रीमती भंवरी देवी जी और स्व. पिताजी श्री पुसराज जी (सुजानगढ़, राजस्थान )को स्मरण करता हूँ तथा उनके चरणों में श्रद्धापूर्वक अपना मस्तक नत करता हूँ जिनकी छाया में पला बढ़ा हूँ और जिन्होंने न केवल जीवन दिया, बल्कि जीवन में सब कुछ दिया है। उनका ऋण मैं कभी भी नहीं चूका सकूँगा। आज मेरी धर्मपत्नी स्मृतिशेष सुशीला कांकाणी होती तो बहुत खुश होती, जिसे मैं ये पुस्तक समर्पित कर रहा हूँ।
इस संग्रह की सारगर्भित, विद्वतापूर्ण व विस्तृत भूमिका हिंदी- साहित्य-आकाश की उज्जवल नक्षत्र, देश-विदेश में ख्यातिलब्ध व समादृत लेखिका व हिंदी काव्य मंच की स्थापित आकर्षण, प्रखर व सार्थक काव्यसाधना के लिए बहुचर्चित ऊर्जस्वी कवयित्री डॉक्टर कविता किरण जी ने लिख कर पुस्तक को व मुझे जो गौरव प्रदान किया है उसके लिये मैं इनका अतिशय आभारी हूँ।
अंत में मैं उस सर्वशक्तिमान ईश्वर, जिनके प्रति पूर्ण आस्था मेरे जीवन का सम्बल है, श्रद्धाभाव से कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ जो मेरी हर अच्छाइयों और गुणों का श्रोत है। जिसने मेरी कमियों, गलतियों व असफलताओं के बावजूद, मुझ पर कृपा की है और मुझे परिपूर्ण सम्बल दिया। उसी के फलस्वरूप यह कृति मैं आप सब के समक्ष रखते हुए अपेक्षा करता हूँ कि आप इसे भी वही प्यार और मान्यता देंगे जो पूर्व की कृतियों को दी है। धन्यवाद !
भागीरथ कांकाणी
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