Saturday 10 December 2016

गंगा का घाट

गंगा की लहरें
टकरा रही है मेरे पैरों से
चल रही है ठंडी-ठंडी हवाएं
मन को मोह रहा है लहरों का संगीत

फूलों के डोंगें
तैर रहे हैं लहरों पर
झिमिला रही है दीपक की बाती
बह रही है कल-कल करती गंगा 

दूर प्रदेशों से आए तीर्थ-यात्री
डगमगाती नौका से
उतर रहे हैं सम्भल -सम्भल कर

खेल रही है मछलियाँ
दौड़ रही है एक दूजे के पीछे
एक मछली अभी-अभी
छपाक से उछली है पानी में

आओ हम भी खेलें
इन मछलियों की तरह
तुम भी कूदना छपाक से
गिरना आकर मेरी गोदी में।


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