Friday 9 December 2016

अंतहीन इन्तजार

आज फिर गया था
फरीदाबाद वाले घर
दरवाजे पर पहुंचा
तो सोचा
तुम सामने आओगी
लेकिन तुम नहीं आई

सीधा तुम्हारे कमरे में गया
लेकिन तुम नहीं थी वहाँ भी
खाली मन से कमरे-दर-कमरे
ढूंढता रहा तुम्हें

लगता रहा कि
किसी न किसी कमरे से
तुम अभी निकल आओगी

रसोई में पड़ा था
तुम्हारा लोटा और गिलास
जिससे तुम पीया करती थी पानी

मैंने भरा गिलास
और पी गया बिना प्यास के ही
पर मन नहीं भरा

छलकती रही आँखें
तुम्हारे अंतहीन
इन्तजार में।



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