Sunday 4 December 2016

पश्मीना

एक दम
खाटी पश्मीना
जिसे खरीदा था तुमने
कश्मीर से

नेफ्थलीन
की गोलियों के संग
सहेज कर रखती थी तुम
बड़े जतन से

कितने चाव से
पहनती थी तुम
सोहणा लगता था
तुम्हारे बदन से

बड़ा ही नरम
और मुलायम
लगा कर रखती थी
तुम बदन से

कश्मीरी बाला लगती
पहन कर पश्मीना
जैसे ढका हो गुलबदन
फूलों से

मैं जब कहता
लगालो काला टीका
शरमा जाती तुम
ढाँप लेती चेहरा
हाथों से

अब कौन करेगा जतन
पड़ा रहेगा अलमारी में
कुरेदता रहेगा मेरी यादों को
नहीं होने देगा विस्मृत
मेरे मन से।



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