Sunday 18 December 2016

रह गई अब यादें

मोती जैसे उज्जवल दिन थे, स्वप्नील थी सब रातें
चली गई तुम साथ छोड़ कर, रह गई अब यादें।

स्वर्ग भी स्वीकार नहीं था, उस एक पल के आगे
      जिस पल में था साथ तुम्हारा, नैना रहते जागे।

जीवन में अब नहीं दीखता, मुझको कोई किनारा
कोई नहीं अब संगी-साथी, जो मुझ को दे सहारा।

      विरह तुम्हारा मुझको अब, नहीं देगा सुख से जीने
      जीवन में दुःख-दर्द के प्याले, अब मुझको होंगे पीने।

पचास वर्ष तक जवां हुई, साथी प्रीत  हमारी
पल भर में चली गई, धरी रही कोशिशे सारी।

एक बार तुम आ जाओ, मैं जी भर तुम से मिल लूंगा
आँखों में बैठा कर तुमको, पलकों को बंद कर लूंगा।




पेज संख्या --90

No comments:

Post a Comment