अब वह बात कहाँ
पहले थी मोहब्बते जिंदगी
अब वह बात कहाँ ?
सुबह-शाम घूमने जाते
हँस-हँस करके बातें करते
तोड़ फूल हाथों में देते
अब वह बात कहाँ ?
एक दूजे की राह देखते
साथ बैठ कर खाना खाते
मनुहारों से भोजन करते
अब वह स्वाद कहाँ ?
शाम-सवेरे पूजा करते
भजन-आरती संग में गाते
रागों की झंकार उठाते
अब वह समा कहाँ ?
जब भी हम फुर्सत में होते
साथ बैठ कर खेल खेलते
पुनर्मिलन की इस जीवन में
अब वह घड़ी कहाँ ?
देश-विदेश घूमने जाते
एक दूजे के संग में चलते
चाँद-चांदनी संग था अपना
अब वह साथ कहाँ ?
चाँद-चांदनी संग था अपना
अब वह साथ कहाँ ?
पहले थी मोहब्बते जिंदगी
अब वह बात कहाँ ?
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